Wednesday, September 11, 2024

जीवन को स्वीकारें, न कि बदलें – जो होगा, सो होगा।

हमारे जीवन में जब हम कोई कहानी पढ़ते हैं, कोई फिल्म देखते हैं या किसी से बातचीत करते हैं, तो कई बार अनजाने में भी कुछ नया सीख जाते हैं, जो हमारे अवचेतन में कहीं न कहीं दर्ज हो जाता है। और फिर आश्चर्यजनक रूप से, जब ज़रूरत पड़ती है, तो वह ज्ञान किसी समस्या का हल निकालने में काम आता है।

अभी जब मैं यह ब्लॉग लिख रहा हूँ, मेरे डाइनिंग हॉल में एलेक्सा पर क्लिंट ईस्टवुड की मशहूर फिल्म "द गुड, द बैड एंड द अगली" की सिग्नेचर ट्यून बज रही है। इस फिल्म का एक खास दृश्य हमेशा मेरे मन में ताज़ा रहता है। फिल्म में "द अगली" यानी तुको (इलाई वॉलेक) एक कठिन घुड़सवारी के बाद आराम से बाथटब में स्नान कर रहा होता है। अचानक एक बंदूकधारी अंदर घुसता है और तुको को मारने की धमकी देता है। तुको बिना एक पल गँवाए, पास रखी बंदूक उठाकर उसे गोली मार देता है और फिर वह अमर संवाद कहता है – "जब गोली चलानी हो, तब गोली चलाओ, बातें मत करो।"

इसमें एक गहरा सबक छिपा है – कई बार हम बेवजह की बातें करते रहते हैं और मुख्य मुद्दे से भटक जाते हैं, जिससे समय और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होती है। बातों में वक्त गंवाने की बजाय, जो करना है वह सीधे करना चाहिए।

इसी तरह, फिल्म "कैसाब्लांका" के एक यादगार दृश्य का ज़िक्र करूँ तो वह है जब इंग्रिड बर्गमैन (इल्सा) रिक के कैफे में आती है और सैम (डूली विल्सन) से कहती है, "प्ले इट अगेन, सैम, फॉर ओल्ड टाइम्स सैक।" पहले तो सैम हिचकिचाता है, लेकिन फिर इल्सा के कहने पर वह "ऐज टाइम गोज़ बाय" बजाने लगता है। तभी अचानक रिक (हम्फ्री बोगार्ट) वहाँ आता है और गुस्से में सैम को डाँटता है, क्योंकि उसने सैम को वह गाना न बजाने के लिए कहा था। यह फिल्म नाकाम मोहब्बत और त्याग की कहानी है। रिक का किरदार सिखाता है कि कैसे मुश्किल हालातों का सामना करना चाहिए, चाहे कितनी भी भावनात्मक जटिलताएँ क्यों न हों।

शरलॉक होम्स की एक मशहूर कहानी "सिल्वर ब्लेज़" का एक प्रसंग भी अक्सर मेरे काम आता है। जब एक कीमती घोड़ा चोरी हो जाता है, तो स्कॉटलैंड यार्ड के जासूस ग्रेगरी पूछते हैं, "क्या कोई और बात है जिस पर आप ध्यान दिलाना चाहेंगे?" होम्स जवाब देते हैं, "वह घटना जो नहीं हुई – रात में कुत्ते के न भौंकने की घटना।" यहाँ से होम्स यह निष्कर्ष निकालता है कि चोर घोड़े के लिए परिचित था, इसलिए कुत्ता नहीं भौंका।

इस तरह से, जब भी मैं किसी समस्या का सामना करता हूँ, तो मेरा अवचेतन मन उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करता है जो सामान्य नहीं होतीं। एक बार, एक संगठन में किसी व्यक्ति के खिलाफ एक चिट्ठी भेजी गई, जबकि उस संगठन में ऐसी नीतियाँ नहीं थीं। मैंने एचआर विभाग से चर्चा की और अपनी राय दी कि यह चिट्ठी शायद किसी निजी नाराजगी का परिणाम है। बाद में, एचआर और एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस मामले को समझदारी से सुलझा लिया।

अंत में, डोरिस डे के अमर गीत "के सेरा सेरा, व्हाटेवर विल बी, विल बी" से भी मैंने एक महत्वपूर्ण सबक सीखा है। अब मैं इस गीत का संदेश अपनाकर जीवन को सहजता से जीता हूँ – चीज़ों को बदलने की कोशिश नहीं करता, बल्कि उन्हें जैसा है, वैसा स्वीकार करता हूँ और खुद को परिस्थिति के अनुसार ढाल लेता हूँ।

जो होगा सो होगा, भविष्य किसने देखा है? बस आज को सरलता से जीएं और हर स्थिति में समझदारी से काम ले l

6 comments:

G G Subhedar said...

बहुत उम्दा लिखा है.. इसे पहले आप अंग्रेजी में लिख चुके हैं... यह प्रशंसनीय कदम है...

samaranand's take said...

धन्यवाद, मित्र! सुभेदार !

विजय जोशी said...

बहुत सुंदर दो संदेश 1) समय का सम्मान 2) जिस परिस्थिती को बदल न सकें, उसे स्वीकार करना सीखें दुखी होते रहने के बजाय। हार्दिक बधाई सहित सादर
- यूं ही नहीं सुख़न का असासा मिला मुझे
- गुज़री है मेरी उम्र किताबों के दरम्यां

samaranand's take said...

Dhanyawad,dear Vijay for your rejoinder!

Abhijit Banerjee said...

आपका ब्लॉग पढ़ कर अच्छा लगा। ब्लॉग के अनुसार जो फिल्म और गीत आपके प्रेरणास्रोत रहे, वे लगभग हम सारे पाठकों को अपरिचित नहीं हैं।मुझे यकीन है कि कुछ लोगों को छोड़ कर हम सभी ने उन फिल्मों को देखा है, उन गीतों को सुना है, परन्तु उनसे मिलने वाले सीख को अपने दैनंदिन जीवन में उपयोग शायद आपने हम सब से अच्छी तरह किया है।
आप ऐसे ब्लॉग लिखते रहिये।

M Puri said...

Bahut Khoob