Thursday, April 17, 2025

चपरासी पिता पलटन पासवान की फाइलों की जादूगरी!



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पटना के एक चायखाने में सैंडी, यानी संदीप पासवान, अपने दोस्तों के बीच बैठा था। सैंडी, जो अब हैकर के नाम से मशहूर था, अपनी बुद्धिमानी की डींगें हांक रहा था। उसकी बातें सुनकर दोस्तों के मुँह खुले के खुले रह गए। कोई पूछे, "भाई, ये दिमाग तुझमें कहाँ से आया? क्या कोई जादुई लड्डू खा लिया था?" सैंडी ने ठहाका लगाया और बोला, "अरे, मेरी बुद्धि का राज मेरे बापू, पलटन पासवान, हैं। वही, जो इनकम टैक्स ऑफिस में चपरासी थे!"

दोस्तों के चेहरे पर हैरानी की लकीरें खिंच गईं। एक दोस्त, जिसका नाम बबलू था और जो हर बात में 'कैसे-कैसे' कहने का आदी था, चिल्लाया, "कैसे? तेरा बाप चपरासी था और आज तू हमें ये बता रहा है कि वो पलटन पासवान पटना के उस महलनुमा बंगले में रहता है? भाई, चपरासी की तनख्वाह में तो एक कमरे का किराया भी नहीं निकलता, ये महल कहाँ से आया?"

सैंडी ने चाय की चुस्की ली, फिर अपनी कुर्सी पर तनिक पीछे झुका और बोला, "अरे, तुम लोग तो बस चाय की तरह उबल रहे हो। बात समझो। मेरे बापू कोई साधारण चपरासी नहीं थे। वो थे—फाइलों के जादूगर! उन दिनों, जब ई-फाइल का नामोनिशान नहीं था, तब दफ्तरों में कार्डबोर्ड की फाइलें इधर-उधर घूमती थीं। और उस फाइल के घूमने का ठेका मेरे बापू के पास था।"

दोस्तों ने एक-दूसरे को देखा। दूसरा दोस्त, जिसे सब पप्पू कहते थे और जो हर बात को दस बार पूछता था, बोला, "अच्छा, अच्छा, तो तेरा बाप फाइलें इधर-उधर करता था। इसमें बुद्धि की बात कहाँ से आई? और ये महल का क्या चक्कर है?"

सैंडी ने अपनी आँखें सिकोड़ीं, जैसे कोई बड़ा रहस्य खोलने वाला हो। "देखो, पटना में उन दिनों भ्रष्टाचार का बाज़ार गर्म था। बड़े-बड़े सेठ, व्यापारी, जिनके टैक्स की फाइलें इनकम टैक्स ऑफिस में जमा होती थीं, वो मेरे बापू के पास आते थे। वो कहते, 'पलटन भाई, हमारी फाइल को थोड़ा सा 'स्पेशल ट्रीटमेंट' दो।' और बापू, जो फाइलों के मालिक थे, एक छोटा-सा परसेंटेज लेते और उस फाइल को फाइलों के पहाड़ में सबसे नीचे दबा देते।"

बबलू ने टोका, "कैसे? मतलब फाइल गायब?"

"अरे, गायब नहीं!" सैंडी हँसा। "फाइल तो थी, लेकिन वो इतनी नीचे दबी होती थी कि उसे निकालने के लिए अफसर को क्रेन बुलानी पड़ती। और क्रेन बुलाने का टाइम किसके पास था? फाइल नीचे दबी, फैसला टला, और सेठ लोग खुश। बापू का परसेंटेज जमा होता गया, और धीरे-धीरे परसेंटेज का ढेर इतना बड़ा हो गया कि उससे महल बन गया!"

पप्पू ने माथा ठोक लिया। "तो तू कह रहा है कि तेरा बाप फाइलों का जादूगर था, और तू उसकी बुद्धि का वारिस है?"

सैंडी ने सीना ठोककर कहा, "बिल्कुल! बापू ने मुझे सिखाया कि बुद्धि का मतलब है—सही वक्त पर सही चीज़ को सही जगह रखना। वो फाइलों को नीचे रखते थे, मैं कोड को ऊपर रखता हूँ। वो परसेंटेज लेते थे, मैं बिटकॉइन लेता हूँ। बस फर्क इतना है कि उनका ढेर कागज का था, मेरा डिजिटल है!"

बबलू ने चाय का गिलास टेबल पर रखा और बोला, "सैंडी, तू तो अपने बाप से भी दो कदम आगे निकला। लेकिन एक बात बता, अगर तेरा बाप इतना बुद्धिमान था, तो चपरासी ही क्यों रहा? अफसर क्यों नहीं बना?"

सैंडी ने आँख मारी और बोला, "अरे, बबलू, तू नहीं समझेगा। अफसर बनने के लिए फाइलें ऊपर भेजनी पड़ती हैं। और बापू का दिमाग फाइलें नीचे रखने में था। ऊपर भेजने में उनका बस चलता ही नहीं था!"

दोस्त हँसते-हँसते लोटपोट हो गए। चायखाने में ठहाकों की गूँज थी, और सैंडी अपनी बुद्धि और बापू के 'फाइल-कौशल' की कहानी सुनाकर और चाय मँगाने में व्यस्त हो गया।

लेकिन उस चायखाने के एक कोने में बैठा एक बूढ़ा चपरासी, जो अब रिटायर हो चुका था, ये सब सुन रहा था। उसने अपनी चाय का आखिरी घूँट लिया और बुदबुदाया, "हम्म, पलटन का बेटा तो बड़ा हो गया। लेकिन ये नहीं जानता कि उसकी बुद्धि का असली राज मेरी वो चाय थी, जो मैं पलटन को रोज पिलाता था। उसमें मैं थोड़ा सा 'बुद्धि-मसाला' डालता था!" और वो बूढ़ा हँसते हुए चायखाने से निकल गया।

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2 comments:

G G Subhedar said...

एक शानदार समन्वय पुराने और नये कारनामों का... और यह सच है...

samaranand's take said...

Thanks dear Subhedar for your comment !