Friday, May 02, 2025

"घंटी, जल और निरुपमा बौदी की परछाई"


"घंटी, जल और निरुपमा बौदी की परछाई"

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रात गहरी थी। नींद की दुनिया में धीरे-धीरे REM स्टेज में प्रवेश ही कर रहा था कि अचानक एक धीमी-सी घंटी सुनाई दी।

"अरे! ये क्या था? इतनी रात को कोई डोरबेल बजा रहा है? सपना तो नहीं देख रहा हूँ?"

फिर सोचा—"नहीं, कोई डिलीवरी बॉय तो हो नहीं सकता, हमारे बिल्डिंग में 11 बजे के बाद तो लिफ्ट ही बंद कर दी जाती है उनके लिए।"

फिर मन में एक और ख्याल आया—
"कहीं ये कोई भूत तो नहीं? सुना है ना, तीसरी मंज़िल पर निरुपमा बौदी की आत्मा भटकती है! ससुराल वालों से झगड़कर उन्होंने छलांग लगा ली थी... और तब से कभी-कभी रोने की आवाज़, बिना वजह घंटी बजना और बिना वजह नल से जल गिरना सब उन्हीं की कारस्तानी है!"

थोड़ा डरते, थोड़ा बड़बड़ाते हुए मैं बिस्तर से निकला। आँखें आधी बंद थीं, शरीर थका हुआ। चलते-चलते पार किया—बेडरूम, फिर डाइनिंग रूम, फिर ड्रॉइंग रूम। अब तो सोचा कि दरवाज़ा खोल ही लूं, चाहे सपना ही क्यों न हो।

पिपहोल से झाँका—कोई नहीं।

"लो जी! अब तो पक्का यकीन हो गया, ये सपना ही है या फिर भूत की माया।"

फिर सोचा—"खोले देता हूँ दरवाज़ा। देखता हूँ कौन है, अगर निरुपमा बौदी होंगी तो कह दूँ—‘बौदी, ज़रा धीरे घंटी बजाइए, कल सुबह मीटिंग है।’”

दरवाज़ा खोलते ही सीधे देखा—कुछ नहीं, लेकिन बाईं ओर एक छाया सी दिखी।

"हे भगवान! कहीं सच में बौदी तो नहीं?"

फिर आवाज़ आई—
"आपके बाथरूम की पाइप फट गई है। ज़ोर की आवाज़ में जल गिर रहा है। मैं तीसरी मंज़िल पर रहती हूँ, नींद नहीं आ रही थी, इसलिए बताने चली आई।"

"अरे बाप रे! ये तो बौदी नहीं, नीचे वाली पड़ोसन निकलीं। शुक्र है, इंसान हैं!"

अब कानों में भी वो आवाज़ साफ़ सुनाई देने लगी—जैसे कोई झरना बाथरूम में बह रहा हो।

भागते हुए बाथरूम पहुँचा। दरवाज़ा खोलते ही लगा मानो गंगाजल प्रसाद देने निकला है। पाइप से ज़ोर की धार में जल बह रहा था।

"अब समझ आया, क्यों बौदी की आत्मा बेचैन थी… असली समस्या तो जल की थी!"

किसी तरह नल बंद किया, गीले फर्श से फिसलते-फिसलते बाल-बाल बचा।

लौटते वक़्त सोचता रहा—"अगर निरुपमा बौदी होतीं, तो क्या वो जल की समस्या पर इतना ध्यान देतीं? और अगर देतीं, तो क्या उन्हें कॉलर ID का ज्ञान होता?"

उस रात मेरी नींद तो गई, लेकिन एक नई कहानी मिल गई—जिसमें थे जल, घंटी, डर और तीसरी मंज़िल वाली बौदी।


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4 comments:

G G Subhedar said...

नयापन लिये एक कुतुहल....

विजय जोशी said...

हा हा हा। डर के आगे जीत है। हास्य और काल्पनिक भय मिश्रित योगदान। हार्दिक बधाई। सादर

samaranand's take said...

Thanks dear Subhedar for liking the blog .

samaranand's take said...

Thanks Vijay for your omment !