Monday, April 28, 2025

बड़ा जोश, छोटा स्वाद!"

मेरे बरौनी रिफाइनरी के 11 साल के दिनों में मैंने न सिर्फ पावर स्टेशन के रखरखाव और संचालन में एक पेशेवर इंजीनियर के रूप में खुद को तराशा, बल्कि बिहार के लोगों के सामाजिक-आर्थिक हालात को भी करीब से समझा। मैंने रिफाइनरी की ओर से फुटबॉल और बैडमिंटन में हिस्सा लिया, ढेर सारे दोस्त बनाए और खुद को बिहारी मानने लगा। जब मैं पावर स्टेशन में शिफ्ट इंचार्ज बना, तब मुझे एक अलग तरह का सबक मिला—जीविका, जाति व्यवस्था और समाज के ताने-बाने से जुड़ा। आम तौर पर लोग आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थे। ज्यादातर पहली पीढ़ी के वेतनभोगी थे, जिनके कंधों पर माता-पिता और अपने बच्चों के बड़े परिवार का बोझ था। वेतन के अलावा कुछ "एक्स्ट्रा" पर भी निर्भर रहते थे।

इसी बीच एक किरदार था—साहू जी। साहू अपनी पुरानी साइकिल बेचना चाहता था, क्योंकि उसे कुछ जरूरी खर्च निपटाने थे। लेकिन उसे अच्छी कीमत नहीं मिल रही थी। वो अपनी परेशानी मुझसे अक्सर शेयर करता। उसकी साइकिल के लिए कोई भी 20 रुपये से ज्यादा की बोली नहीं लगा रहा था। 1976 में 20 रुपये बड़ी रकम थी, लेकिन साहू को और चाहिए थे।

एक दिन मैंने नोटिस बोर्ड पर देखा कि साहू ने एक अनोखा ऐलान चिपकाया था। उसने लिखा था कि वो अपनी साइकिल को लॉटरी के जरिए बेचेगा। एक लॉटरी टिकट की कीमत थी 5 रुपये। मैं हैरान था कि ये क्या चक्कर है!

मैंने इलेक्ट्रिकल कंट्रोल रूम के ऑपरेटर एस.पी. सिंह से पूछा, "अरे, साहू की साइकिल का क्या हुआ?"

सिंह ने हंसते हुए बताया, "अरे सर, साहू ने तो कमाल कर दिया! उसने लॉटरी निकाली, 30 लोग शामिल हुए। हर टिकट 5 रुपये का। कुल मिलाकर 150 रुपये कमा लिए। और साइकिल? वो तो लकी विनर को 5 रुपये में दे दी!"

मैं दंग रह गया। "क्या बात है! 20 रुपये की साइकिल को 150 रुपये में बेच दिया?"

सिंह ने ठहाका लगाया, "हां सर, साहू तो बड़ा चतुर निकला। बोला, 'साइकिल तो वैसे भी पुरानी थी, लेकिन मेरी लॉटरी ने सबको सपना दिखाया!'"

मैंने हंसते हुए कहा, "साहू तो बिजनेस गुरु है! हमें तो इंजीनियरिंग पढ़ाई, लेकिन ये तो मार्केटिंग का उस्ताद है!"

**प्रबंधन सबक**: साहू की कहानी हमें सिखाती है कि रचनात्मक सोच और नवाचार से आप सीमित संसाधनों का भी अधिकतम मूल्य निकाल सकते हैं। जरूरत सिर्फ यह है कि आप समस्या को अलग नजरिए से देखें और लोगों की भावनाओं व उम्मीदों को अपने पक्ष में इस्तेमाल करें। साहू ने साइकिल नहीं, एक "सपना" बेचा—और वो भी 150 रुपये में!

6 comments:

V.k . Shukla. Bhopal said...

सीमित संसाधनों का अधिकतम मूल्य निकालना आदि मानव गुण हैं। वर्तमान‌ को समझना होगा।‌ साहू जी जेसे मित्र जीवन में मिलते तो हैं।‌ पहचान पाना कठिन है।
सर बधाई
विनोद कुमार शुक्ला, भोपाल

विजय जोशी said...

Very apt. Thus is also called Pratyutpanna mati प्रत्युत्पन्नमति in sanskrit. Right sense at right time and right in time action. Hearties congratulations. Kind regards

samaranand's take said...

Thanks Shukla for your nice comment !

samaranand's take said...

Thanks dear Vijay,yes you are right he was street smart !

Zindagi Mulakaat said...

That is interesting. Sahu had business acumen. Remember having read Kotlers book in MBA. Also recalled my Dad’s Ofc Lotteries Deptt. Me n my friends were invited to roll drums n fetch big number of lottery ticket digits😃 We were given prizes n gifts. Not to mention the prize ambassador car then - in which joy rides were given.- Daisy (Unable to Google sign)

samaranand's take said...

Thanks dear Daisy for your related comment !